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हे प्रभो, ये कैसा है वसंत? / राजकुमार कुंभज
Kavita Kosh से
हे प्रभो, ये कैसा है वसंत
अभी-अभी आया और अभी-अभी अंत?
मैंने छोड़ी नहीं ज़मीन
मैंने छोड़ी नहीं हिम्मत
मैंने छोड़ी नहीं आँधियाँ
टक्कर-दर-टक्कर
आगे हुई आँधियाँ
मैं उड़ा सूखे पत्ते की मानिंद
मैं उड़ा सूखे तिनके की मानिंद
मैं उड़ा धूल, राख, मिट्टी
हे प्रभो, ये कैसा है वसंत
अभी-अभी आया और अभी-अभी अंत?
मेरे पास घर नहीं है
मेरा कोई भी घर नहीं है
कवि का होता भी नहीं है घर कोई
फिर घर का तमाशा क्यों ?
अच्छे से समझ लो
कि आवाज़ और पुकार में होता है फ़र्क
एक बुलाती है, एक पुकारती है
पुकारती पुकार में मैं
हे प्रभो, ये कैसा है वसंत
जो कमीना जन्मजात पुरस्कार उसको
और जो प्रेमल, उसको तिरस्कार ?
हे प्रभो, ये कैसा है वसंत?
रचनाकाल : 2012