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हे प्रिय मित्र, क्‍या तुमने निज बन्‍धु का यह / कालिदास

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»  हे प्रिय मित्र, क्‍या तुमने निज बन्‍धु का यह

कच्चित्‍सौम्‍य! व्‍यवसितमिदं बन्‍धुकृत्‍यं त्‍वया मे
     प्रत्‍यादेशान्‍न खलु भवतो धीरतां कल्‍पयामि।
नि-शब्‍दो∙पि प्रदिशसि जलं याचितश्‍चातकेभ्‍य:
     प्रत्‍युक्‍तं हि प्रणयिषु सतामीप्सितार्थक्रियैव।।

हे प्रिय मित्र, क्‍या तुमने निज बन्‍धु का यह
कार्य करना स्‍वीकार कर लिया? मैं यह
नहीं मानता कि तुम उत्‍तर में कुछ कहो
तभी तुम्‍हारी स्‍वीकृति समझी जाए। तुम्‍हारा
यह स्‍वभाव है कि तुम गर्जन के बिना भी
उन चातकों को जल देते हो, जो तुमसे
माँगते हैं। सज्‍जनों का याचकों के लिए
इतना ही प्रतिवचन होता है कि वे उनका
काम पूरा कर देते हैं।