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हे मेघ, अपने मित्र कैलास पर / कालिदास

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»  हे मेघ, अपने मित्र कैलास पर

हेमाम्‍भोजप्रसवि सलिलं मानसस्‍याददान:
     कुर्वन्‍कामं क्षणमुखपटप्रीतिमैरावतस्‍य।
धुन्‍वन्‍कल्‍पद्रुमकिसलयान्‍यंशुकानीव वातै-
     नानाचेष्‍टैर्जलद! ललितैर्निर्विशे तं नगेन्‍द्रम्।।

हे मेघ, अपने मित्र कैलास पर नाना भाँति
की ललित क्रीड़ाओं से मन बहलाना। कभी
सुनहरे कमलों से भरा हुआ मानसरोवर का
जल पीना; कभी इन्‍द्र के अनुचर अपने
सखा ऐरावत के मुँह पर क्षण-भर के लिए
कपड़ा-सा झाँपकर उसे प्रसन्‍न करना; और
कभी कल्‍पवृक्ष के पत्‍तों को अपनी हवाओं
से ऐसे झकझोरना जैसे हाथों में रेशमी
महीन दुपट्टा लेकर नृत्‍य के समय करते
हैं।