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हे मेघ, गम्‍भीरा के तट से हटा हुआ / कालिदास

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»  हे मेघ, गम्‍भीरा के तट से हटा हुआ

तस्‍या: किंचित्‍करधृतमिव प्राप्‍तवानीरशाखं
     नीत्‍वा नीलं सलिलवसनं मुक्‍तरोघोनितम्‍बम्।
प्रस्‍थानं ते कथ‍मपि सखे! लम्‍बमानस्‍य भावि
     शातास्‍वादो विवृतजघनां को विहातुं समूर्थ:।।

हे मेघ, गम्‍भीरा के तट से हटा हुआ नीला
जल, जिसे बेंत अपनी झुकी हुई डालों से
छूते हैं, ऐसा जान पड़ेगा मानो नितम्‍ब से
सरका हुआ वस्‍त्र उसने अपने हाथों से
पकड़ा रक्‍खा है।
हे मित्र, उसे सरकाकर उसके ऊपर
लम्‍बे-लम्‍बे झुके हुए तुम्‍हारा वहाँ से हटना
कठिन ही होगा, क्‍योंकि स्‍वाद जाननेवाला
कौन ऐसा है जो उघड़े हुए जघन भाग का
त्‍याग कर सके।