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हे मेघ, चिकने घुटे हुए अंजन की शोभा / कालिदास
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उत्पश्यामि त्वयि तटगते स्निगधभिन्नाञ्जनाभे
सद्य:कृत्तद्विरददशनच्छेदगौरस्य तस्य।
शोभामद्रे: स्तिमितनयनप्रेक्षणीयां भवित्री-
मंसन्यस्ते सति हलभृतो मेचके वाससीव।।
हे मेघ, चिकने घुटे हुए अंजन की शोभा से
युक्त तुम जब उस कैलास पर्वत के ढाल
पर घिर आओगे, जो हाथी दाँत के तुरन्त
कटे हुए टुकड़े की तरह धवल है, तो
तुम्हारी शोभा आँखों से ऐसी एकटक देखने
योग्य होगी मानो कन्धे पर नीला वस्त्र डाले
हुए गोरे बलराम हों।