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नीपं दृष्ट्वां हरितकपिशं केसरैरर्धरूढे-
राविर्भूप्रथममुकुला: कन्दलीश्चानुकच्छम्।
जग्ध्वारण्येष्वधिकसुरभिं गन्धमाघ्राय चोर्व्या:
सारंगास्ते जललवमुच: सूचयिष्यन्ति मार्गम्।।
हे मेघ, जल की बूँदें बरसाते हुए तुम्हारे
जाने का जो मार्ग है, उस पर कहीं तो भौरे
अधखिले केसरोंवाले हरे-पीले कदम्बों को
देखते हुए, कहीं हिरन कछारों में भुँई-केलियों
के पहले फुटाव की कलियों को टूँगते हुए,
और कहीं हाथी जंगलों में धरती की उठती
हुई उग्र गन्ध को सँघते हुए मार्ग की सूचना
देते मिलेंगे।