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हे मेघ, पहले तो अपनी यात्रा के लिए / कालिदास

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मार्गं तावच्‍छृणु कथयतस्‍त्‍वत्‍प्रयाणानुरूपं
     संदेशं मे तदनु जलद! श्रोष्‍यसि श्रोत्रपेयम्।
खिन्‍न: खिन्‍न: शिखरिषु पदं न्‍यस्‍यन्‍तासि यत्र
     क्षीण:क्षीण: परिलघु पय: स्त्रोतसां चोपभुज्‍य।।

हे मेघ, पहले तो अपनी यात्रा के लिए
अनुकूल मार्ग मेरे शब्‍दों में सुनो-थक-थककर
जिन पर्वतों के शिखरों पर पैर टेकते हुए,
और बार-बार तनक्षीण होकर जिन सोतों
का हलका जल पीते हुए तुम जाओगे।
पीछे, मेरा यह सन्‍देश सुनना जो कानों से
पीने योग्‍य है।