भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे मेरी तुम !. / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
हे मेरी तुम !
जब आषाढ़ी बादल आएँ
आसमान में और हवा में
- हाथी धायें
ऊँचे-ऊँचे सूँड़ उठाएँ
और झमाझम पानी बरसे
तब तुम उस नव बरसे जल में,
अपने तन पर लाल लपेटे,
अपनी छत पर ख़ूब नहाना
- और बाद में
उन्हें आँख के
खिले कमल के फूल चढ़ाना !
यह स्वभाव है सुधी जनों का
- और घनों का,
वह प्रसन्न होते हैं
रमणी के अर्पण से !