भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे यौ प्रियतम! बाजू कने कियै रूसल छी / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
हे यौ प्रियतम! बाजू कने कियै रूसल छी
किछु अहाँ बाजू एना कियै चुप्पे बैसल छी
मोनक गप्प अहाँ ने कहलौ कोना बूझब हम
एहि फिकिरमे हम तँ देखू दिन भरि भूखल छी
भोर बजेलौं घरमे अहाँ कोना अबितौ यौ
बड़का कक्का बैसल छलाह तेँ ने हूसल छी
मोन चोरौलक आन कियो सेहो बाजू यौ
चैन गमयलहुँ निन्न भगयलहुँ कतए रीझल छी
जिनगी अप एक-दोसर बिन कोना चलतै यौ
अहींक खुशीमे बूझू जे हमहुँ कुशल छी