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हे राम ! / सांवर दइया
Kavita Kosh से
प्रार्थना से पूर्व
शिष्य के रूप में
हत्यारा आ खडा हुआ सामने
जैसे हमारे बीच
अब भी रहता है भेडिया
ओढ़कर गाय की खाल
प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हाथ
हाथों में तमंचा
तमंचे मे गोलियां
गोलियां सीने के आर-पार
धांय- धांय- धांय
के बीच अक्षय वाणी
हे राम !
आज भी होती है प्रार्थना
आज भी चलती हैं गोलियां
लेकिन
प्रणाम की मुद्रा में जड़ते नहीं हाथ
कहीं भी
किसी भी वक्त
आ धमकता है भेडिया
और छोड़ जाता है खून के निशान
फिर इकट्ठी होती है भीड़
सूखी संवेदना के शब्द-
हे राम !