भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे री सखी सावन मास घिरण लाग्यो / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे री सखी सावन मास घिरण लाग्यो
ननदी ऐसा खत लिखवा दो मेरे प्रीतम को बुलवा दो
भाभी मेरा बीर नहीं आवै वो तो पहुंचा ज़िला मुलतान में
ननदी अपने बाबल ने कहदे मन्ने अपने घर घलवा दे
मेरी माता खुसी मनावे आ गई मरवण आज
बेटी तेरी साथ की झूलें तुम भी झूलो चम्पा बाग में
एरी सब सखियां हार सिंगारै हमते तारें हार सिंगार नै
एरी मेरे बांई हाथ को कांगणी ले गया काग उठाय के
आने पटकी ज़िला मुलतान में तित बैठा नर सुलतान जी
आइयो री मेरी कांगणी किस विध आई मेरे पास री
ऐसी सब सखियां झूला झूलें आई ना कुंवर निहालदे
उसका मां बाप सब रोया उसकी रावै छोटी बाहण जी
परितम भले वक्त पर आये सिर के केस जलन नहीं पाये
हाथ की मैहंदी छूटण नहीं पाई माथे की बिंदी छूटन नहीं पाई
रह गई कुंवर निहाल दे