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हे विधना / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
हे विधना ! मोरे आँगन का बिरवा सूखे ना !
- यह पहली पहचान मिठास भरा,
- रे झूमे लहराये रहे हरा,
हे विधना ! मोरे साजन का हियरा दूखे ना !
- लम्बी बीहड़ सुनसान डगरिया,
- रे हँसते जाए बीत उमरिया,
हे विधना ! मोरे मन-बसिया का मन रूखे ना !
- कभी न जग की खोटी आँख लगे,
- साँसत की अँधियारी दूर भगे,
हे विधना ! मोरे जोबन पर बिरहा ऊखे ना !