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हे सखि रहि रहि सालै हैं प्राण / गंगा प्रसाद राव
Kavita Kosh से
हे सखि रहि रहि सालै हैं प्राण
कहिया होतै केना होतै
बिरहा के विहान
रात अन्हरिा मन अकुलावै
चानोॅ केॅ देखै लेॅ जी ललचावै
रहि रहि पपीहा मारै है तान
हुनकोॅ याद जबेॅ मन भरमावै
हाथ आरो गोड़ सब भागै लेॅ चाहै
आगू बढ़ी रोकै छै राहे जहान
झूठ आरो मूठ के जाती-पाती
आपन्है लेली सब मरै दिन-राती
फेरु कैन्हें हमरोॅ कोय मारै छै जान