हे सखी कट्ठी होल्यो, बदल दिखाद्यो हरियाणा / मुकेश यादव
हे सखी कट्ठी होल्यो, बदल दिखाद्यो हरियाणा
जात-पात की बुरी बीमारी, दिल तै काढ़ बगादयो हे
माणस-माणस होवे बराबर, सबनै या समझादयो हे
ना कोए ऊंचा ना कोए नीचा, खोलकै बतादयो हे
वोटां खातर जात राखर्ये, करर्ये सै धिंगताणा
गाम-गाम म्हं ठेके खुलग्ये, घर-घर नशाखोर होगे
सुलफा गांजा चरस स्मैकी, नसेड़ी पुरजोर होगे
कुछ महंगाई घरां शराबी, संकट चारों ओर होगे
नशामुक्त हो हरियाणा, हो दूध-दही का खाणा
छोरियां की संख्या घटगी, चिंता बढग़ी भारी हे
पढ़ण-लिखण खेलकूद म्हं, ये सबतै आग्गै आरी हे
भ्रूण हत्या नै रोकण की थम, मिलकै करल्यो त्यारी हे
दोयम दरजा खत्म करो और आग्गै कदम बढ़ाणा
मात-पिता की संपति म्हं, अपणे हिस्से लेणे चहिएं
दान-दहेज और सिद्धे कौथळी, नहीं किसै नै देणे चहिएं
कह ‘मुकेश’ ये लारे लप्पे, नहीं किसै नै खेणे चाहिए
अपणे हक की खातिर बोलो, इसमैं कै शरमाणा