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हे सुहागिनी, मैं तुम्‍हारे स्‍वामी का सखा / कालिदास

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भर्तुर्मित्रं प्रियमविधवे! विद्धि मामम्‍बुवाहं
तत्‍संदेशैर्हृदयनिहितैरागतं त्‍वत्‍समीपम्।
यो वृन्‍दानि त्‍वरयति पथि श्राम्‍यतां प्रोषितानां
मन्‍द्रस्निग्‍धैर्ध्‍वनिभिरबलावेणिमोक्षोत्‍सुकानि।।

हे सुहागिनी, मैं तुम्‍हारे स्‍वामी का सखा मेघ
हूँ। उसके हृदय में भरे हुए सन्‍देशों को
लेकर तुम्‍हारे पास आया हूँ। मैं अपने
धीर-गम्‍भीर स्‍वरों से मार्ग में टिके हुए
प्रवासी पतियों को शीघ्र घर लौटने के लिए
प्रेरित करता हूँ, जिससे वे अपनी विरहिणी
स्त्रियों की बँधी हुई वेणी खोलने की उमंग
पूरी कर सकें।