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हे सौम्‍य, फिर मलिन वस्‍त्र पहने हुए गोद / कालिदास

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उत्‍सङ्गे वा मलिनवसने सौम्‍य! निक्षिप्‍य वीणां
     मद्गोत्राङ्क विरचितपदं गेयमुद्गातुकामा।
तन्‍त्रीमार्द्रां नयनसलिलै: सारयित्‍वा कथंचि-
     द्भूयोभूय: स्‍वयमपि कृतां मूर्च्‍छनां विस्‍मरन्‍ती।।

हे सौम्‍य, फिर मलिन वस्‍त्र पहने हुए गोद में
वीणा रखकर नेत्रों के जल से भीगे हुए
तन्‍तुओं को किसी तरह ठीक-ठाक करके
मेरे नामांकित पद को गाने की इच्‍छा से
संगीत में प्रवृत्‍त वह अपनी बनाई हुई स्‍वर-
विधि को भी भूलती हुई दिखाई पड़ेगी।