हे हमर ईश्वर / मन्त्रेश्वर झा
सड़क पर जाइत काल फेकि देब भरि मुँह थूक
सड़क की कोनो हमर बापक छी
जकर छियनि से जनता
जे रहन्ती से पोछन्ती
हमर की? निवारण करब अपन शंका के ठामहि,
जेना कोनो गेस्ट हाउस सँ जेबा काल
तौलिया सँ पोछि लेब अपना जूता
जानि ने फेर हम आयब कहिया
तौलिया होउक खराब, गेस्ट हाउस गन्हाउ
हमर की? हँ, हमर की?
ककरो टाका, ककरो जमीन, ककरो आओर किछु
घुसका लेब अपना दिस, ठकि लेब अनका
बना लेब, बनबैत रहब अपन महल,
फुलवारी, धीया-पुता, पद, प्रतिष्ठा
जे नहि छी अपन, तकरा बनबैत रहि
जायब अपन
अर्जित करैत कहि जायब शक्तिक बखारी
करैत रहब निरन्तर सभके अपन अधीन,
बनबैत रहब सभ किछु के अपन
केवल अपन।
मुदा बुझलहुँ नहि जे की छी अपन
अपन की छी।
राधे बाबू चल गेलाह भरल जवानी मे
करैत रहि गेलाह भरि जन्म बैमानी
आ बना गेलाह पत्नी के असहाय विधवा
छोट-छोट धीया-पूता के टूगर
मोहन लाल भरि जीवन भरैत रहलाह
अपन गोदाम आ चल गेलाह,
बेचारे तकिते रहि गेलाह सुख।
सीा बेटा बुड़ा गेलनि, पड़ि गेलनि डाका
तखन सभ क्यो किएक
अपना लेल, बस केवल अपना लेल
किदन किदन जमा करैत रहि जाइत छी भरि जीवन?
सुख भेटत काल्हि तकर आशा मे
आ काल्हि आबि जाइत अछि अकस्मात्
बिना कोनो पूर्व सूचना के
तेँ हम पुछैत छी अपन ईश्वर सँ
अहाँ तऽ छी सभ मे आ हमरो मे समान
आ जखन हमहूँ छी ईश्वर तऽ एना होइत
अछि किएक?
किएक अपन आत्मा केँ, अपन विवेककेँ
दबा लैत छी हम अपन अपनासँ
अपन सपना सँ
हमर लोभ, मोह, काम, क्रोध
किएक मारि दैत अछि हमर आत्मा के
हमर जीवितहिं
ई कोन माया थिक हे हमर परमात्मा
आगि सँ प्रकाशित नहि होइत अछि अपन घर,
तेँ जरबैत रहैत छी केवल अनकर अनकर
ई कोन माया थिक अहाँक हे हमर ईश्वर!
जे जीवितो, स्पंदनशील रहितो
घुप्प अन्हार निर्मित कए स्वयं
रहि जाइत छी कवल अपन छाया बनि
अनावश्यक प्रश्नक जंजाल ठाढ कए
पिबैत रहैत छी रुग्ण अपन सत्
अपन चित्, अपन आनन्द
शास्त्र के बना लैत छी शस्त्र
किएक ने बनि पबैत अछि सर्वत्र
केवल क्राइस्ट आ कि बुद्ध आ कि कबीर
गुरु नानक आ कि महावीर
किएक ने ताकि पबैत अछि अपनहि
लोक अपना के अपना मे
किएक ने उपजैत अछि हमरो संपूर्ण
सृष्टि पर करुणा
कठोपनिषद्? माविद्विषामहे
किएक ने जानि पबैत अछि लोक
अपन परमात्मा के स्वयं लगाय कोनो आत्माक सीढ़ी
किएक हे हमर देवता
हम तऽ पूजा करैत छी अहाँक जा के मन्दिर मे
मुदा लागल रहि लाइत छी
बताह जकाँ भरि जन्म
बनेबाक लेल शैतानक महल
अपना लेल अपन जहल
ने चिन्हैत छी स्वयंके ने देखैत छी अपन आत्मा
घेरने रहैत अछि हरदम अपरिचय के विन्ध्याचल
पेरने रहैत अछि अहम् के अन्हरिया।
आ अहाँ रहि जाइत छी दूर बहुत दूर, किए
हे हमर ईश्वर।
करू कृपा देव
लीला अहाँक पसरल अछि, खोलू हमर नेत्र
तोडू़ हमर मोह
हे हमर ईश्वर।