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हे हमार चित्त, हे हमार मन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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हे हमार चित्त, हे हमार मन,
भारत के महामानव समुद्र तट पर,
पवित्र तीरथ में धीरे-धीरे जग।
इहाँ खड़ा होके, दूनू हाथ जोड़ के
नर-देवत के नमस्कर कर!
उत्तम छंद में, अत्यंत हुलास से,
एह देवता के वंदना करऽ!!
इहाँ जे ध्यान मग्न परबत बा,
नदी के माला पहिनले प्रांतर बा,
एह पवित्र धरती के रोज दरसन कर।
भारत के महा मानव-समुद्र तट पर!!
केहू नइखे जानत जे केकरा पुकार पर,
कतना किसिम के मनुष्यन के धारा,
प्रबल प्रवाह में कहाँ से आके,
एह समुद्र में समा गइल!!
इहाँ आर्य-अनर्य, द्राविड़ आ चीन
शक-हुण के दल, पैठान आ मोगल
सभे आके एके देह में हो गइल लीन!
आज पच्छिम के दरवाजा खुल गइल बा,
सभे उहाँ से कुछ उपहार ला रहल बा,
केहू देता, केहू लेता, आदान-प्रदन चलू ब
केहू लौट के ना जाई, सभे एकाकार हो जाई
एह भारत के महा मानव-समुद्र तट पर।
रन में रक्त के धार बहावत,
विजय गीत गावत, उन्मादी कोलाहल करत,
मरूपथ के बलुआही धरती धाँगत,
वन-गिरि-परबत लँघत,
जेतना लोग आइल-
से सभे आजो हमरा बीच विराजमान बा।
केहू हमरा से दूर नइखे, अलगा नइखे
आजो सभकर विविध स्वर
हमरा खून में बोल रहल बा।।
बाज, बाज रे रूद्र वीणा, बाज!
जे लोग आजो अपनन से घिनाता,
जे लोग आजो अपनन से दूर ठाढ़ बा,
से सभे बंधन तूर के दउरल आई।
घृणा के घेरा टूटी, सभे एकता में जूटी।
एह भारत के महा मानव-समुद्र तट पर।।
इहाँ एक दिन अखंड ओंकार के ध्वनि
एकता के महामंत्र के साथ
हृदय तंत्री के तार पर
झनझना उठल रहे।
तपबल से एकता के आग में-
अनेकता के आहुति दे के,
भेदभाव भुला देले रहे,
एगो विराट हृदय जगा देले रहे।
ओही साधना-आरधन के
यज्ञशाला के दरवाजा
आज फेनू खुल गइल बा।
इहाँ सभे एक भाव से मिल-मिल के
सिर नवा के खड़ा बा
एह भारत के महा मानव-समुद्र तट पर!
आज ओही आहुति के आग में
दुख के लाल लपट उठ रहल बा
आज इहे भाग्य के लेख बुझात बा
कि मर्मो स्थान के दहन सहन करे के होई।
हे हमार मन,
एह दुख के सहन कर।
एकता के पुकार सुन।
लाज-भय छोड़ दे।
अपमान के बात दूर हटा दे।
कठिन कष्ट के अंत होई
महत् प्रान के जनम होई।
रात के बाद परात के राज होई
एह भारत के महा मानव-समुद्र तट पर!
आवऽ हो आर्य, आवऽ अनार्य,
आवऽ हिंदू-मुसलमन,
आवऽ आवऽ अँगरेज आज,
आवऽ हो इसाई-क्रिस्तन
आवऽ हो बराम्हन
मन के पवित्तर करके आवऽ
सभ कर हाथ बाँह धर के घरे बोलावऽ
आवऽ हे पतित जन
सब अपमान भुला के आवऽ
आज माता के अभिषेक बा
सब केहू जल्दी से आवऽ!
सभका स्पर्श से पवित्तर करके
मंगलघट में अबहीं ले
तीरथ जल नइखे भराइल!
आवऽ आवऽ आज माता के अभिषेक बा
भारत के महामानव-समुद्र तट पर!!