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हे हर विपति पड़ल सिर भारी / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हे हर विपति पड़ल सिर भारी
अन्न-बसन बिनु तन-मन बेकल, पुरजन भेल दुखारी हे
अपन कि आन कान नहि सूनय, गूनय जानि भिखारी हे
मंगने कहय हाथ अछि खाली, रहितो द्वार बखारी हे
गंग नियर बसु गायब हम हँसि बनब जे तोर पुजारी हे
अछैत मनोरथ सभ भेल बेरथ, बनलहुँ अन्त भिखारी हे
लिखल-पढ़ल कत बात गढ़ल कत, किछुओ ने भेल हितकारी हे
शशिनाथ माथ पद टेकल, आबहु लएह उबारी हे