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हैं चलन अब जहाँ के बदलने लगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हैं चलन अब जहाँ के बदलने लगे।
शिष्य हैं शिक्षकों को परखने लगे॥
बाग में इक कली जो कहीं पर खिली
झुंड अलियों के देखो बहकने लगे॥
चाँद घूँघट हटा दे घटा का अगर
चाँदनी चाँद से खुद लिपटने लगे॥
नीम की डालियाँ जब सघन हो गयीं
घोंसलों में पखेरू चहकने लगे॥
चाहते थे सदा जो हमारी कृपा
हम उन्हीं की नजर में खटकने लगे॥
झूठ का इस कदर बोलबाला बढ़ा
सत्य के पंथ से लोग हटने लगे॥
धर्म ग्रंथों की जब बात झूठी लगे
पृष्ठ हम ज़िन्दगी के पलटने लगे॥