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हैं लोग जो कलियों को भी खिलने नहीं देते / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हैं लोग जो कलियों को भी खिलने नहीं देते।
आँखों में कोई ख़्वाब हैं पलने नहीं देते॥
बढ़ने हैं लगे अब तो जहालत के अँधेरे
वो इल्म के चिराग़ को जलने नहीं देते॥
हैं ख़्वाब तसव्वुर है मुहब्बत है वफ़ा भी
लेकिन वफ़ा कि राह पर चलने नहीं देते॥
जो लोग लगा लेते हैं उल्फ़त का बगीचा
मौसम वह बहारों का बदलने नहीं देते॥
जब सीख लिया दर्द को दिल में ही छिपाना
आँखों से कभी अश्क़ वह ढलने नहीं देते॥
बेचैन हुआ ग़म से ग़लत राह चल पड़ा
लग्ज़िश से भरे पाँव संभलने नहीं देते॥
हमदर्द जो सच्चे हैं वही ख़ैरख़्वाह भी
नेकी की राह से वह फिसलने नहीं देते॥