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हैरत से देखता हूँ हर इक नक़्शे-पा को मैं / रतन पंडोरवी
Kavita Kosh से
हैरत से देखता हूँ हर इक नक़्शे-पा को मैं
दिन रात ढूंढता हूँ किसी दिल रुबा को मैं
ये कौन सा मक़ाम है ऐ जोशे-बे-ख़ुदी
रस्ता बता रहा हूँ हर इक रहनुमा को मैं
दोनों ही कामयाब हुए हैं तलाश में
ज़ाते-ख़ुदा मिली मुझे ज़ाते-ख़ुदा को मैं
मिट्टी उठा के देखता हूँ राहे-शौक़ की
भूला नहीं हूँ जोशे-तलब में फ़ना को मैं
हस्ती फ़ना हुई तो हक़ीक़त ये खुल गई
मैं ख़ुद बक़ा हूँ किस लिए ढूंढू बक़ा को मैं
अल्लह रे जज़्बे-शौक़ की मेहमां नवाज़ियां
दिल हूँ मुद्दआ का ज़रीआ क़ज़ा को मैं
क्यों उस की जुस्तजू का हो सौदा मुझे 'रतन'
मुझ से अगर जुदा हो तो ढूंढू ख़ुदा को मैं।