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है अँधेरा वक्त जब तक / शुभम श्रीवास्तव ओम

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है अँधेरा वक़्त जब तक
आइए दर्पण उगाएँ ।

पेड़ परजीवी, नुकीले फूल
नरभक्षी हवाएँ
एक नन्ही-सी बया का
मुँह दबाती सभ्यताएँ

प्रश्न करतीं अस्मिताएँ
मौन आदिम भूमिकाएँ
नहीं मरने दे रहीं पर
शिलालेखी आस्थाएँ ।