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है अगर जाना तो हैं वो पास आते क्यों / रंजना वर्मा
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है अगर जाना तो हैं वो पास आते क्यों
बन नयन में अश्रु कण हैं झिलमिलाते क्यों
स्वप्न में आ कर हमे यों छेड़ कर जाना
दूर रह कर फिर पहुँच से हैं सताते क्यों
बेरहम होती गरीबी है चलो माना
हार कर हालात से आँसू बहाते क्यों
कर नहीं पाते वफ़ा जो हार जाते हैं
तोड़ देने के लिये रिश्ते बनाते क्यों
हम तुम्हारे साथ हैं वादा सदा करते
वक्त लेता करवटें तब तोड़ जाते क्यों
है लिखा तकदीर में जिनका बिखर जाना
व्यर्थ ऐसे स्वप्न नयनों में सजाते क्यों
दूर तक है रेत फैली सिन्धु जल खारा
हम नये उम्मीद के बिरवे लगाते क्यों