भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है ई कोनीं कोई / ओम पुरोहित कागद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुरजी
फेर तप्यो है
दिप्यो है
कण-ख़ाण धरा रो
काळीबंगां रै थेड़ में
नीं ढूंढै छींयां
तपते तावड़ै
नीं कोई आवै
नीं कोई जावै
है ई कोनीं कोई
जको ताणै
तावड़ै में छातो
बो देखो
गयो परो
आगूण सूं आथूण
थेड़ नै डाकतो सुरजी।