भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है कहाँ कोई / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
है कहाँ कोई
किसी के साथ
जागती रहती हवेली
रात भर
ताकती अपना ही वैभव
हाथ भर
चौंधियाती रौशनी की
छाँव में
चैन से सोये हुए
फुटपाथ
शब्द भी जिनके लिए
बेमोल हैं
और रिश्ते
भोथरे हैं, खेल हैं
किस ज़ुबां में
उनको हम
समझाएँ अपनी बात
है कहाँ कोई
किसी के साथ