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है किसी से मुझको गिला नहीं / कैलाश झा 'किंकर'

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है किसी से मुझको गिला नहीं
है किसी की कोई ख़ता नहीं।

जो लगा था बाग़ उजड़ गया
जो उजड़ गया सो बसा नहीं।

न कहूँगा दिल की कसक तुझे
जो भी चाहिए वह मिला नहीं।

वो उठा रहा है ग़रीब को
जो ग़रीब घर में पला नहीं।

मैं डटूँगा सत्य की राह पर
न कहेगा कोई डटा नहीं।

न कहा था मैंने कि प्यार है
है जो प्यार तुमने कहा नहीं।

वो नहाए-खाए बिना गये
है कहीं भी उनका पता नहीं।

मैं रहूँगा दिल के करीब ही
जो कहा था उसने किया नहीं।