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है ग़लत गर गुमान में कुछ है / ख़्वाजा मीर दर्द
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है ग़लत गर गुमान में कुछ है
तुझ सिवा भी जहान में कुछ है
दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है
आन में कुछ है, आन में कुछ है
बे-ख़बर तेग-ऐ-यार कहती है
बाकी इस नीम-जान में कुछ है
इन दिनों कुछ अजब है मेरा हाल
देखता कुछ हूँ, ध्यान में कुछ है
दर्द तो जो करे हैं जी का ज़ियाँ
फाएदा इस जियान में कुछ है