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है ज़रूरी तो मुस्कराना है / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
है ज़रूरी तो मुस्कराना है
सबको क्यों हाले दिल सुनाना है
कितने रिश्ते अधर में टूट गये
ग़म से रिश्ता मगर पुराना है
पहले दस्तार बचा लें अपनी
फिर ये सोचेंगे सर बचाना है
कोई सर से गया तो धड़ से कोई
वाह , क्या आपका निशाना है
है जुनूं भी मेरा बुलंदी पर
जोश दरिया का आज़माना है
आपका साथ है तो क्या चिंता
वाकई यह सफ़र सुहाना है
जिनकी आंखों पे है पड़ा परदा
उनको भी आइना दिखाना है