भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है ज़रूरी तो मुस्कराना है / डी .एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

है ज़रूरी तो मुस्कराना है
सबको क्यों हाले दिल सुनाना है

कितने रिश्ते अधर में टूट गये
ग़म से रिश्ता मगर पुराना है

पहले दस्तार बचा लें अपनी
फिर ये सोचेंगे सर बचाना है

कोई सर से गया तो धड़ से कोई
वाह , क्या आपका निशाना है
 
है जुनूं भी मेरा बुलंदी पर
जोश दरिया का आज़माना है

आपका साथ है तो क्या चिंता
वाकई यह सफ़र सुहाना है

जिनकी आंखों पे है पड़ा परदा
उनको भी आइना दिखाना है