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है ज़िन्दगी की ज़िद कि ये हरक़त बनी रहे / प्रेम भारद्वाज
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है ज़िन्दगी की ज़िद कि ये हरक़त बनी रहे
उसपर हमेशा मौत की आफ़त बनी रहे
उसकी बुतों को तोड़ना आदत बनी रहे
अपनी भी सबको जोड़ना हसरत बनी रहे
मंज़ूर है तरक़्क़ी मगर एक शर्त है
इक दूसरे की सबको ज़रूरत बनी रहे
आईन<ref> विधान </ref> में लिखा है जो क़िरदार<ref >चरित्र </ref> में भी हो
यानि जहाँ में क़ौम की इज़्ज़त बनी रहे
अभिमन्यु-वध उनके लिए छोटी-सी बात है
चाहें महारथी ये सियासत बनी रहे
इन्सानियत के हो के तरफ़दार ये मिला
कोई न कोई ज़ेह्न पर आफ़त बनी रहे
कुछ यूँ चले कि प्यार के रस्ते खुले रहें
कुछ यूँ करे कि सबमें महब्बत बनी रहे
ज़िन्दा है जिसके दम से ये बरक़त<ref>प्रचुरता</ref> जो प्रेम की
शेरो-सुख़न अदब की वो ताक़त बनी रहे.
शब्दार्थ
<references/>