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है तीरगी जनाब ज़रा सब्र कीजिये / रंजना वर्मा
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है तीरगी जनाब ज़रा सब्र कीजिये।
निकलेगा आफ़ताब ज़रा सब्र कीजिये॥
मरने के बाद सामने आएगा आपके
कर्मों का सब हिसाब ज़रा सब्र कीजिये॥
अस्मत के जो लुटेरे हैं पाएँगे वह सज़ा
उठ जाएगा नक़ाब ज़रा सब्र कीजिये॥
इक रोज़ ऐसा आएगा नफ़रत के बाग़ में
महकेगा फिर गुलाब ज़रा सब्र कीजिये॥
उसका सवाल लौट के आएगा जिस घड़ी
होगा वह लाजवाब ज़रा सब्र कीजिये॥
ग़ुर्बत हमारे सब्र का इक इम्तेहान है
गुज़रेंगे दिन ख़राब ज़रा सब्र कीजिये॥
ज़ाया न होंगे क़िस्से किसी हाल प्यार के
छप जायेगी किताब ज़रा सब्र कीजिये॥