भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है तो कोई आवाज़ / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
नहीं देख पाता हूँ
गहरी धुंध में उस को
—ख़ुद को भी पूरा नहीं—
चलता ही जाता हूँ लेकिन
सुनता वह चिड़िया
कहाँ, किस झुरमुट में है
वह—
किसे गाती है
न हो चाहे वह मेरे लिए
इस गहरी धुंध में
है तो कोई आवाज़
सुनता हुआ जिसे मैं हूँ—
भटकता जाता
अपनी मंज़िल की ओर
—
20 नवम्बर 2009