भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है तो है / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
हाँ, मुझे तुमसे प्यार है तो है
जान, तुम पर निसार है, तो है
दिल भी बेखुद, बेकरार है तो है
सांझ से, तेरा इंतज़ार है तो है
तू इस दिल का रोज़गार है, तो है
चुरा के दिल को, तू फ़रार है तो है
जुनूं सर पर, फिर सवार है, तो है
डालना दिल पे डोरे, कारोबार है तो है
तेरा तसव्वुर, मेरा ख़ुमार है, तो है
ख्वाब मेरा, तुझ पर उधार है तो है