भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है दिल को शौक़ उस बुत-ए-क़ातिल की दीद का / अमीर मीनाई
Kavita Kosh से
है दिल को शौक़ उस बुत-ए-क़ातिल की दीद का
होली का रंग जिस को लहू है शहीद का
दुनिया परस्त क्या रहे उक़बा करेंगे तै
निकलेगा ख़ाक घर से क़दम ज़न मुरीद का
होने न पाए ग़ैर बग़लगीर यार से
अल्लाह यूँ ही रोज़ गुज़र जाए ईद का
सारा हिसाब ख़त्म हुआ हश्र हो चुका
पूछा गया न हाल तुम्हारे शहीद का
जा के सफ़र में भूल गए हमको वो अमीर
याँ और दोस्तों ने लिखा ख़त रसीद का