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है पतरी कमर नाजुक बहियाँ धनुष कैसें टोरें सइयाँ / बुन्देली

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है पतरी कमर नाजुक बहियाँ धनुष कैसें टोरें सइयाँ।
कोमल गात श्री भगवान, कर में सोहत लाल कमान,
भारी महादेव कौ बान, हारे बड़े-बड़े बलवान,
कोउ जोधा पै धनुष तनत नइयाँ। धनुष।।
हरि कै अधिक रसीले नैना, चित सें टारें नहीं टरें ना,
जो कहुँ उनसे धनुष तने ना, खाकर जहर मरूँ मेरी बैना,
देव लक्ष्मण की उमर लरकइयाँ।। धनुष।।
हरि की मधुर सुन सुन बानी, मोरे दिल में प्रीति समानी,
राजा टेक धनुष की ठानी, हारी सब भूपन ने मानी,
पिया प्यारे की नरम कलइयाँ।। धनुष।।
सुमिरौ शिव शंकर कैलासी, मैं हूँ रामचन्द्र की दासी,
दिल में अति प्रेम की प्यासी, दुर्गालाल कटेरा वासी,
करूँ हरि से विनय परूँ पइयाँ ।। धनुष।।