Last modified on 4 सितम्बर 2019, at 00:22

है पेट भरों का कहना क्या? / शैलेन्द्र सिंह दूहन

सब से आगे दौड़ लगा यों
खुद को पीछे छोड़ थका यों,
सारा सागर पी कर के है
गंदे नालों ज्यों बहना क्या?
है पेट भरों का कहना क्या?
अरमानों की लाश उठा कर
भाड़े के आँसू टपका कर,
सारा गुलशन पा कर के भी
पाते हैं ये चैना क्या?
है पेट भरों का कहना क्या?
भूखों से ही भिक्षा लेकर
कर्तव्यों की शिक्षा दे कर,
भीख मिली कुर्सी के मद में
उन्मादी हो कर रहना क्या?
है पेट भरों का कहना क्या?