भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है प्यारो निज नाम निहारो / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
है प्यारो निज नाम निहारो।
अक्षर शब्द-शब्द उरभासत परमधाम पर पूरन न्यारो।
है सतसंग संग मन राचौ ध्यान सिमतिकर सुरत समारो।
रूप न रेख धूप नहिं छाया नहिं काया फल कर्म पसारो।
जूड़ीराम विचार पुकारें सतगुरु शब्द भयो उजयारो।