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है प्यार यहाँ करना मुश्किल / विमल राजस्थानी

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समझो है पीर बराबर जब हों चारों आँखें भरी-भरी
जग ने फेंकी होंगी तक-तक कंकरियाँ कस कर रुक-रुक कर
फूटी होगी शायद दोनों रस छलकाती मन की गगरी-

है प्यार यहाँ करना मुश्किल
कर लो तो है जीना मुश्किल
हम प्यासे ही रह जाते हैं
पानी रहते पीना मुश्किल

तेवर के तीर बरसते हैं, पग-पग पर व्याधे बसते हैं
मिलने को प्राण तरसते, पर हिरनी-सी आँखें डरी-डरी

कलियाँ खिलने को अकुलातीं
बाँहों में झूल-झूल जातीं
तब तथाकथित नैतिकता की-
त्यौरियाँ हजारों बल खातीं

पर्दे के भीतर रातों को नित रास रचाये जाते हैं
धर्मों की नीवों पर पापों के महल उठाये जाते हैं
लेकिन यदि सच्ची लगन लगी, कुहराम मचा देती नगरी

-आकाशवाणी के पटना केंद्र से प्रसारित
9.11.1973