है बहुत ताक़ वो बे-दाद में डर / ज़ेब गौरी
है बहुत ताक़ वो बे-दाद में डर है ये भी
जाँ सलामत न बचा लाऊँ ख़तर है ये भी.
दिल की लौ फिर उसी ठहराव पे आ जाएगी
इक ज़रा देर हवाओं का असर है ये भी.
जू-ए-पायब-ए-मोहब्बत में जवाहिर मत ढूँढ
किसी पत्थर को समझ ले के गुहर है ये भी.
जुस्तुजू गौहर-ए-मानी की ज़ियाँ वक़्त का है
क्या परखता है उन्हें सर्फ़-ए-नज़र है ये भी.
मंज़िलें ख़त्म हुईं तर्क ओ तअल्लुक़ की तमाम
अब किसी सम्त निकल जा के सफ़र है ये भी.
अब सलामत कहाँ रह पाएगा ये नक़्श-ए-वफ़ा
कुछ लहू दिल का बचा ले के हुनर है ये भी.
दश्त ओ दर में वही सुर्ख़ी वही पेड़ों पे चमक
ज़र्द फूलों को न देखो तो सहर है ये भी.
आगे चल के तो कड़े कोस हैं तन्हाई के
और कुछ दूर तलक लुत्फ़-ए-सफ़र है ये भी.
क्या है मैं जिस के तजस्सुस में परेशान भी हूँ
'ज़ेब' कुछ हाथ न आएगा ख़बर है ये भी.