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है भरा जो सुख तुम्हारे प्यार में / रंजना वर्मा
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है भरा जो सुख तुम्हारे प्यार में
वह कभी मिलता नहीं संसार में।।
चोट लग जाती अगर संतान को
डूबती माँ आँसुओं की धार में।।
जय सदा संतान की ही चाहती
सुख मनाती है स्वयं की हार में।।
है उसी की दुआ की तासीर ये
फूल मिल जाते हमेशा ख़ार में।।
शीश आँचल की सदा छाया रहे
डुबकिया लगती रहें रसधार में।।
ईश भी हो सामने तो छोड़ दूँ
डूब जाऊँ मैं तुम्हारे प्यार में।।
स्वर्ग से भी माँ अधिक सुखदायिनी
देवता क्यों मैं बनूँ बेकार में।।