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है मज़ा आ रहा आज बरसात में / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
है मजा आ रहा आज बरसात में
डुबकियाँ लग रहीं खूब जज़्बात में
मिल गयी जब नज़र फैसला हो गया
एक रिश्ता जुड़ा बात ही बात में
आसमां में घिरीं जलभरी बदलियाँ
चाँद कैसे दिखे ऐसे हालात में
चाँदनी को अँधेरा चुरा ले गया
कुछ दिखाई न देता घनी रात में
चाँद छुपता कभी दिख रहा है कभी
ढूँढता चाँदनी को ख़यालात में
बादलों के भला पास है क्या रखा
चन्द बूँदें ही लाया है सौगात में
ढूँढ़ते हो मसर्रत के कतरे मगर
दर्द ही दर्द है मेरे नग़मात में