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है मात कृपा करिये हम शीश नवाते हैं / रंजना वर्मा

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हे मात कृपा करिए हम शीश नवाते हैं।
मां ज्ञान हमें दीजे इस हेतु बुलाते हैं॥

हो वृष्टि सदा हम पर रस छंद भरे जल की
हो दृष्टि दया वाली संगीत सुनाते हैं॥

झंकार रहे वीणा के तार मधुर स्वर में
आरोह उठा कर ये अवरोह गिराते हैं॥

आवाज सुनी जब से जग को है ज़रा जाना
पा धूल चरण की हम निज शीश झुकाते हैं॥

माँ आप कृपा करके इस ओर निहारें तो
जो मूर्ख कहे जाते सम्मान वह पाते हैं॥

माँ ज्ञानमयी उनकी है जून सुधर जाती
जो एक नजर पाने को उम्र गंवाते हैं॥

माँ आप चरण अपने जिस शीश पर रख देती
वो विश्व में पूजित हो संसार को भाते हैं॥