भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है मेरे सीने में कम्पन / सुरजीत पातर / योजना रावत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 है मेरे सीने में कम्पन, मैं इम्तिहान में हूँ ।
मैं खिंचा तीर हूँ, मगर अभी कमान में हूँ ।

है तलवार इश्क़ की पर अपने ही सीने में,
कभी मैं ख़ौफ़, कभी रहम की म्यान में हूँ ।

बचाना आज किसी के सीने लगने से मुझे,
कि आज मैं पंछी नहीं, तीर हूँ, उड़ान में हूँ ।

ज़मीन रथ है मेरा, वृक्ष हैं परचम मेरे,
मेरा मुकुट है सूरज, मैं बहुत शान में हूँ ।

मिली अगन में अगन, जल में जल, हवा में हवा,
कि बिछड़े सब मिले, मैं अभी भी उड़ान में हूँ ।

तेरा ख़याल मेरे सीने से सटा हुआ है,
है रात हिज्र की, पर मैं अमन अमान में हूँ ।

मैं किसके साथ गुफ़्तगू करूँ कि कोई नहीं
मेरे बिना, मेरे रब ! मैं जिस जहान में हूँ ।

छुपा के रखता हूँ तुमसे मैं ताज़ा नज़्में
ताकि तू जानकर रोए, मैं किस जहान में हूँ ।

ये लफ़्ज़ मेरे नहीं, पर यह वाक्य मेरा है
या शायद यह भी नहीं, मैं यूँ ही गुमान में हूँ ।

पंजाबी से अनुवाद : योजना रावत