है मौसम कर गया शरारत चुपके से।
पतझर की दे गया विरासत चुपके से॥
चंचल पाँवों में ऋतु-पायल छनकाना
सीख गयी संसृति यह आदत चुपके से॥
तपते मौसम में जल का छिड़काव करें
शीतल ऋतु में भरे हरारत चुपके से॥
चक्रवाक साथी से मिलने की खातिर
करता है हर रोज इबादत चुपके से॥
काक कोकिला दोनों ही सम पंछी पर
करता कौआ नित्य अदावत चुपके से॥
दूर क्षितिज धरती अम्बर के मिलने की
आफ़ताब कर रहा सदाक़त चुपके से॥
साँझ ढली लो घना अँधेरा घिर आया
तारों की लग गयी अदालत चुपके से॥