है ये किस जन्म का रिश्ता तुमसे / गौरव शुक्ल
है ये किस जन्म का रिश्ता तुमसे,
टूट कर भी खतम नहीं होता।
तुमसे नाराज बहुत हूँ लेकिन,
प्यार कमबख्त कम नहीं होता।
एक उम्मीद की पतली डोरी,
दिल के कोने में अभी कायम है।
सोते-सोते मैं चौंक उठता हूँ,
बेखुदी का अजीब आलम है।
उदासियों में सरापा डूबी,
रात मनहूस चिढ़ाती है मुझे।
ऐसा महसूस होता है अक्सर,
तू कहीं दूर बुलाती है मुझे।
मेरे चेहरे की झलक पाने को,
तेरी आँखें भी छटपटाती हैं।
मेरे आगोश में आने के लिए,
तेरी बाँहें भी कसमसाती हैं।
ये भी मुमकिन है ये खयाल मेरा,
खामखाँ का खयाल हो शायद।
गम न हो मुझसे बिछड़ने का तुझे,
मुझसे उल्फत बवाल हो शायद।
अपने दिल की तो खैर तू जाने,
मैं तो तुझको भुला नहीं सकता।
मैं तुझे प्यार तो कर सकता हूँ,
मैं भले तुझको पा नहीं सकता।