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है ये लोहू-लुहान, ठीक नहीं / श्याम कश्यप बेचैन

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है ये लोहू-लुहान ठीक नहीं
आज का आसमान ठीक नहीं

गिर पड़ोगे लुढ़क के मुँह के बल
बेपरों की उड़ान ठीक नहीं

अब तो उबरो मुग़ालते से तुम
झूठ की आनबान ठीक नहीं

आदमी बस, मकीन होता है
ख़ुद को समझो मकान ठीक नहीं

ख़ून में ही रही ना जब गर्मी
प्यालियों में उफ़ान ठीक नहीं

थोड़ी अपनी भी तैश की लत है
थोड़ी उसकी जु़बान ठीक नहीं

आप तलवार की ख़ूबी देखें
क्या हुआ, गर मयान ठीक नहीं

ठीक क्या है, ये जब नहीं जाना
कैसे कह दूँ, जहान ठीक नहीं