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है रात यह भयानक मैं हूँ नदी किनारे / बाबा बैद्यनाथ झा
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है रात यह भयानक मैं हूँ नदी किनारे
अब मौत मुस्कुराकर देखो मुझे पुकारे
घनघोर हैं घटाएँ बिजली चमक रही है
हैं गुम न दीखते अब आकाश में सितारे
सब अट्टहास करते देकर मुझे चुनौती
क़ातिल बने हुए हैं बेखौफ़ ये नज़ारे
लेकर मशाल आये थे आप ही वहाँ पर
मंज़िल मिली मुझे है आपके सहारे
जब भी पड़ी मुसीबत बाबा मुझे बचाने
तब कृष्ण पास होते करते हुए इशारे