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है सदा निभती नहीं संसार से / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
है सदा निभती नहीं संसार से
जिंदगी चलती नहीं व्यापार से
मार दो ठोकर मिले व्यवधान जो
हो गये भयभीत क्यों हम हार से
जिंदगी रब का दिया उपहार है
जीत लो सबको मधुर व्यवहार से
मत रखो उर द्वेष की चिंगारियाँ
आग कब जलती बुझे अंगार से
अब न हो आतंक उजड़ी बस्तियाँ
सीख लें जीना चलो हम प्यार से