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है हवाओं को इंतज़ार / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
आज मेरे आकाश पर
बनता है इन्द्रधनुष
किन्तु रंगहीन
आज मेरे मंदिर में
बजती हैं घंटियां
किन्तु स्वरहीन
मेरे सितार पर
सजते हैं गीत
किन्तु लयविहीन
मेरे चित्रपट पर
उतरती है तस्वीर
बेरंगत बेलौस
आज एक अकेला दीप
काग़ज़ की नाव पर
भटक रहा
नदी में उठ चुका तूफ़ान
लड़ रहा अकेला वह
साहिल से दूर
दूर केवट तक रहा
टिमटिमाती लौ
जिसके बुझने का है
हवाओं को इंतज़ार।