भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
है
क्या नहीं है
समय की चाल में अब
जो अतीत में चल रहे हैं सब
बे-ढब,
दब-दब ?
(रचनाकाल :20.10.1967)